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jhaukiri
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Posted on 04-09-12 12:14
AM
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लम्पसार खाट,
अर्धमुर्छित डस्ना
स्मृतिका स्पर्शहरु |
साइडको बर्रदली ..
रछ्यानको पिकचर,
कागती झुण्डाको ढोका.
पेटी विहिन बलेसी .
एउटा छात.... भाको भए...
यो घर हुने थियो |
बाटो ...
सर्बांग नागों..
बेरिदैछ पैतालासंग |
काठमा टासिएका पातहरु
सजिब्ताको प्रमाणकोलागि कथा लेख्दै छन् ..
दुंगाका हरफहरु..
अक्षर बने...
यहाँ हरेक ठाउँ हरेक मानिस
एउटा कथा बनेर बाँचेको छ |
भीड ...
कुनै अर्थ बिना..
जसले जे भन्यो ,
जसले जे गर्यो
क्या परिचय छ !!!
समाजको टाउको
बेश्य्को शरीर ...
थकित भएर पनि
चकित बनाउन..
फिजिएको छ ..
चारैतिर |
हेर्दै..
दगुर्दै ..
दृस्टी र पाईलाको
युद्धमा ..
डुब्दै गएका किरणहरु ..
उभर्दै गएका आशाहरु
तन्काउदैछन् ..
यहाँ देखि त्यहाँसम्म |
कहिले छिन्ला यो जीवन...
Last edited: 09-Apr-12 12:15 AM
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Geology Tiger
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Posted on 04-09-12 12:25
AM [Snapshot: 23]
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लौ आज पनि टाउको दुखिरहेको थियो यहाँको कविता पढेर मजा आयो..
अब चाँही नेपाली टाइप गर्न सिकाउनै पर्यो जस्तो छ
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ThahaChaena
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Posted on 04-09-12 9:18
AM [Snapshot: 184]
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दामी लग्यो हौ कविता त ..... हुन पनि हो
"यहाँ हरेक ठाउँ हरेक मानिस
एउटा कथा बनेर बाँचेको छ | "
सारै मीठो ......
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amricane
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Posted on 04-09-12 9:54
AM [Snapshot: 226]
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सटिक मिठो अर्थपूर्ण कविता .
हिज्जे मा चै अलि खयाल गर्न पर्यो अब
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jhaukiri
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Posted on 04-09-12 12:34
PM [Snapshot: 332]
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अब दाईहरुले नै सिकाउनुपर्छ | हाहाहा ..
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Bhaktey
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Posted on 04-09-12 12:38
PM [Snapshot: 335]
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झ्याउकिरीको कवितामा नतमस्तक भए फेरी एकपटक !!
लेख्दै जानुस !!
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Pokhrelikanchi
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Posted on 04-09-12 12:54
PM [Snapshot: 357]
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सारै नै राम्रो लग्यो कविता
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jhaukiri
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Posted on 04-09-12 9:13
PM [Snapshot: 471]
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